जब जब नारी पे अत्याचार हुआ, हम हाथ
पकड़कर बैठे थे
कोई दर्द नही, कोई
भय नही बिन फिक्र के ऐसे लेते थे
जाने कौन घडी मै आज हमे इह्सास हुआ, कि अब चुप नही रहेगे हम
दिन प्रतिदिन ये नरसन्गार, ये
बलात्कार, ये दहेज के सक्षात्कार को बदने नही देगे हम
ये आतन्क को हमने ही बडावा दिया है
अब यही हमको खाने दोडा है
इस घिनोने अत्याचार ने आज आतन्क का मट्का फोदा है
ये हमारा देश है, ये हमारी बेहने
और बेटीया
है, ये देश
हमारी माता है
इस देश की रक्षा करना हमी
लोगो से आता है
कयूकी जन्तन्त्र लोगो के लिये, लोगो से शुरु और लोगो का होता है
तो अगर ये हमारा है, तो हम इस्के कानून मे भागीदार क्यो नही है?
अगर ये कानून थीक नही तो हम ही इस्के झिम्मेदार
है
कयो नही हम इस्की प्रगती और बद्लाव के मददगार है?
आशा करता हू की इस भारत कि बेटी का सन्घर्श व्यर्थ नही जयेगा
आज हमारे भारत मे एक इन्सान पैदा हो जयेगा
आज हमारे भारत मे एक इन्सान पैदा हो जयेगा
Poem by Nitin Dhar
Copyright © 2012 - Present Nitin Dhar/dharbarkha.blogspot
Photo Courtesy: Altaf Qadri/Associated Press